बोलती-बतियाती भाषा में बड़ी कहानी कहने का हुनर राकेश कायस्थ को मौजूदा दौर के लोकप्रिय लेखकों की क़तार में शामिल करता है। मुख्यधारा की पत्रकारिता में लंबा समय बिता चुके राकेश ठेठ देहाती दुनिया से लेकर चकाचौंध भरी महानगरीय ज़िंदगी तक पूरे देश और परिवेश को समग्रता में समझते हैं। इनका क्रिएटिव कैनवास काफ़ी बड़ा है। न्यूज़ चैनलों पर राजनीतिक व्यंग्य आधारित कार्यक्रमों को विस्तार देने से लेकर, डॉक्युमेंट्री फ़िल्म मेकिंग और ‘मूवर्स एंड शेकर्स’ जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों की स्क्रिप्टिंग सरीखे कई काम खाते में दर्ज हैं। चर्चित व्यंग्य-संग्रह ‘कोस-कोस शब्दकोश’ और फ़ैंटेसी नॉवेल ‘प्रजातंत्र के पकौड़े’ के बाद ‘रामभक्त रंगबाज़’ इनकी नई किताब है, जो शिल्प और कथ्य के मामले में पिछली रचनाओं से एकदम अलग है। कहानी में गहराई है लेकिन लहजे में ग़ज़ब की क़िस्सागोई है। आरामगंज में क़दम रखते ही आप समकालीन इतिहास की उन पेंचदार गलियों में खो जाते हैं, जहाँ मासूम आस्था और शातिर सियासत दोनों हैं। धार चढ़ाई जाती सांप्रदायिकता है लेकिन कभी न टूटने वाले नेह के बंधन भी हैं।अतरंगी किरदारों की इस अनोखी दुनिया में कभी हँसते तो कभी रोते अफ़साना कैसे गुज़र जाता है ये पता ही नहीं चलता।
बोलती-बतियाती भाषा में बड़ी कहानी कहने का हुनर राकेश कायस्थ को मौजूदा दौर के लोकप्रिय लेखकों की क़तार में शामिल करता है। मुख्यधारा की पत्रकारिता में लंबा समय बिता चुके राकेश ठेठ देहाती दुनिया से लेकर चकाचौंध भरी महानगरीय ज़िंदगी तक पूरे देश और परिवेश को समग्रता में समझते हैं। इनका क्रिएटिव कैनवास काफ़ी बड़ा है। न्यूज़ चैनलों पर राजनीतिक व्यंग्य आधारित कार्यक्रमों को विस्तार देने से लेकर, डॉक्युमेंट्री फ़िल्म मेकिंग और ‘मूवर्स एंड शेकर्स’ जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों की स्क्रिप्टिंग सरीखे कई काम खाते में दर्ज हैं। चर्चित व्यंग्य-संग्रह ‘कोस-कोस शब्दकोश’ और फ़ैंटेसी नॉवेल ‘प्रजातंत्र के पकौड़े’ के बाद ‘रामभक्त रंगबाज़’ इनकी नई किताब है, जो शिल्प और कथ्य के मामले में पिछली रचनाओं से एकदम अलग है। कहानी में गहराई है लेकिन लहजे में ग़ज़ब की क़िस्सागोई है। आरामगंज में क़दम रखते ही आप समकालीन इतिहास की उन पेंचदार गलियों में खो जाते हैं, जहाँ मासूम आस्था और शातिर सियासत दोनों हैं। धार चढ़ाई जाती सांप्रदायिकता है लेकिन कभी न टूटने वाले नेह के बंधन भी हैं।अतरंगी किरदारों की इस अनोखी दुनिया में कभी हँसते तो कभी रोते अफ़साना कैसे गुज़र जाता है ये पता ही नहीं चलता।