स्त्री विमर्श पर आधारित उपन्यास 'ढाई कदम’ एक स्त्री की संघर्ष कथा के साथ उसके जीवन में महीन रेशों से बुनी सामाजिक व्यवधान को रेखांकित करती है। पाठकों को आज के भौतिकता की प्राथमिकता पर आधारित समाज में स्त्री-पुरुष की बिगड़ती मानसिक विकृतियों को पात्रों के माध्यम से सहज समझ आता है। इस उपन्यास में एक संघर्षरत विद्यार्थी की समस्याओं और उसके जीवन में आ रहे मानसिक अवस्था को बखूबी लिखा गया है। एक संघर्षरत छात्र एवं उनके अभिभावक के लिए यह उपन्यास एक मार्गदर्शिका की तरह है। लेखक उपन्यास के पात्रों के माध्यम से ढोंगी बाबाओं एवं सामाजिक ढकोशलों के प्रति सचेत करता एवं स्पष्ट राय रखता है। त्रिकोणीय प्रेम के साथ-साथ समाज के अन्य संबंधों के महीन रेशों में गुथी एक भावनात्मक उपन्यास है 'ढाई कदम'। उपन्यास "ढाई कदम" की मुख्य पात्र शिवांगी नामक एक स्त्री है। वह स्त्री होने के दंश को झेलती हुई, अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ी। जब वह प्रेम और वासना शब्द से अनजान थी तब भी उसे जीवन में प्रेम और वासना से संघर्ष करना पड़ा। समाज में व्याप्त मनोविकारों से ग्रसित उसकी अपनी सहेली से खुद को मुक्त कर 'एकला चलो रे' के सिद्धांत को आत्मसात किया। जब उसने प्रेम में बढ़ाए गए ढाई कदम को समझा तो उसने अपने मित्र की ओर अपनी अस्मिता की शुचिता को ध्यान में रखते हुए अपने कदम बढ़ाए पर जीवन में सफलता सभी को मिले ऐसा होता है क्या? आज-कल के सामाजिक परिवेश में फैले मनोविकार, छद्म आचरण और विश्वासघात के महीन रेशों में फंसी एक स्त्री के लिए अपने लक्ष्य की तरफ कदम उठाने के संघर्ष एवं सफलता या असफलता के परिणाम पर जीवन दिशा बदलने की जद्दोजहद की कहानी कहता है यह उपन्यास "ढाई कदम"।
स्त्री विमर्श पर आधारित उपन्यास 'ढाई कदम’ एक स्त्री की संघर्ष कथा के साथ उसके जीवन में महीन रेशों से बुनी सामाजिक व्यवधान को रेखांकित करती है। पाठकों को आज के भौतिकता की प्राथमिकता पर आधारित समाज में स्त्री-पुरुष की बिगड़ती मानसिक विकृतियों को पात्रों के माध्यम से सहज समझ आता है। इस उपन्यास में एक संघर्षरत विद्यार्थी की समस्याओं और उसके जीवन में आ रहे मानसिक अवस्था को बखूबी लिखा गया है। एक संघर्षरत छात्र एवं उनके अभिभावक के लिए यह उपन्यास एक मार्गदर्शिका की तरह है। लेखक उपन्यास के पात्रों के माध्यम से ढोंगी बाबाओं एवं सामाजिक ढकोशलों के प्रति सचेत करता एवं स्पष्ट राय रखता है। त्रिकोणीय प्रेम के साथ-साथ समाज के अन्य संबंधों के महीन रेशों में गुथी एक भावनात्मक उपन्यास है 'ढाई कदम'। उपन्यास "ढाई कदम" की मुख्य पात्र शिवांगी नामक एक स्त्री है। वह स्त्री होने के दंश को झेलती हुई, अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ी। जब वह प्रेम और वासना शब्द से अनजान थी तब भी उसे जीवन में प्रेम और वासना से संघर्ष करना पड़ा। समाज में व्याप्त मनोविकारों से ग्रसित उसकी अपनी सहेली से खुद को मुक्त कर 'एकला चलो रे' के सिद्धांत को आत्मसात किया। जब उसने प्रेम में बढ़ाए गए ढाई कदम को समझा तो उसने अपने मित्र की ओर अपनी अस्मिता की शुचिता को ध्यान में रखते हुए अपने कदम बढ़ाए पर जीवन में सफलता सभी को मिले ऐसा होता है क्या? आज-कल के सामाजिक परिवेश में फैले मनोविकार, छद्म आचरण और विश्वासघात के महीन रेशों में फंसी एक स्त्री के लिए अपने लक्ष्य की तरफ कदम उठाने के संघर्ष एवं सफलता या असफलता के परिणाम पर जीवन दिशा बदलने की जद्दोजहद की कहानी कहता है यह उपन्यास "ढाई कदम"।