Read Anywhere and on Any Device!

Subscribe to Read | $0.00

Join today and start reading your favorite books for Free!

Read Anywhere and on Any Device!

  • Download on iOS
  • Download on Android
  • Download on iOS

तमस

Bhisham Sahni
4.16/5 (1316 ratings)
आज़ादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरंग चित्रण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है। काल-विस्तार की दृष्टि से यह केवल पाँच दिनों की कहानी है, वहशत के अँधेरे में डूबे हुए पाँच दिनों की कहानी, जिसे लेखक ने इस खूबी के साथ बुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उद्-घाटित हो जाता है और पाठक सारा उपन्यास एक साँस में पढ़ जाने के लिए विवश हो जाता है ।

भारत में सांप्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी हे और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है। आज़ादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की ज़मीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आज़ादी के बाद हमारे अपने देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं। और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न हिंदू हैं, न मुसलमान बल्कि सिर्फ इंसान हैं, और हैं भारतीय नागरिक।

भीष्म साहनी ने आज़ादी से पहले हुए सांप्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उखाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं।
Format:
Hardcover
Pages:
310 pages
Publication:
2009
Publisher:
Rajkamal Prakashan
Edition:
Language:
hin
ISBN10:
8126715391
ISBN13:
9788126715398
kindle Asin:
8126715391

तमस

Bhisham Sahni
4.16/5 (1316 ratings)
आज़ादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरंग चित्रण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है। काल-विस्तार की दृष्टि से यह केवल पाँच दिनों की कहानी है, वहशत के अँधेरे में डूबे हुए पाँच दिनों की कहानी, जिसे लेखक ने इस खूबी के साथ बुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उद्-घाटित हो जाता है और पाठक सारा उपन्यास एक साँस में पढ़ जाने के लिए विवश हो जाता है ।

भारत में सांप्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी हे और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है। आज़ादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की ज़मीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आज़ादी के बाद हमारे अपने देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं। और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न हिंदू हैं, न मुसलमान बल्कि सिर्फ इंसान हैं, और हैं भारतीय नागरिक।

भीष्म साहनी ने आज़ादी से पहले हुए सांप्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उखाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं।
Format:
Hardcover
Pages:
310 pages
Publication:
2009
Publisher:
Rajkamal Prakashan
Edition:
Language:
hin
ISBN10:
8126715391
ISBN13:
9788126715398
kindle Asin:
8126715391