ग्रामीण पृष्ठभूमि में रचे-बसे वसीम अकरम के पहले उपन्यास 'चिरकुट दास चिंगारी' में ग्रामीण परिवेश, पात्र और बोली अपने बेहद मौलिक स्वरूप में प्रस्तुत हुए हैं। एक पात्र की तेरहवीं से शुरू होकर एक अन्य पात्र की तेरहवीं पर खत्म होने वाले इस कथानक में जीवन के विविध रंग बहुत जीवंतता के साथ प्रस्तुत हुए हैं। इन्हीं में से एक रंग यह है कि काकी की तेरहवीं में एक तरफ़ लोग शोकाकुल दिखते हैं, तो ख़ुद काकी के घर पर ही लाउडस्पीकर पर गाना भी बजता है। भाषा के भदेसपन के साथ गालियाँ वहाँ सबके मुँह से फूलों की तरह झड़ती हैं। एक गाँव के माध्यम से सभी गाँवों और प्रकारांतर से पूरे देश और समाज के स्याह-सफ़ेद पक्ष पर चली वसीम अकरम की कलम भारत के ग्रामीण जीवन में व्याप्त समस्याओं पर विचार करने पर मजबूर करती है।
ग्रामीण पृष्ठभूमि में रचे-बसे वसीम अकरम के पहले उपन्यास 'चिरकुट दास चिंगारी' में ग्रामीण परिवेश, पात्र और बोली अपने बेहद मौलिक स्वरूप में प्रस्तुत हुए हैं। एक पात्र की तेरहवीं से शुरू होकर एक अन्य पात्र की तेरहवीं पर खत्म होने वाले इस कथानक में जीवन के विविध रंग बहुत जीवंतता के साथ प्रस्तुत हुए हैं। इन्हीं में से एक रंग यह है कि काकी की तेरहवीं में एक तरफ़ लोग शोकाकुल दिखते हैं, तो ख़ुद काकी के घर पर ही लाउडस्पीकर पर गाना भी बजता है। भाषा के भदेसपन के साथ गालियाँ वहाँ सबके मुँह से फूलों की तरह झड़ती हैं। एक गाँव के माध्यम से सभी गाँवों और प्रकारांतर से पूरे देश और समाज के स्याह-सफ़ेद पक्ष पर चली वसीम अकरम की कलम भारत के ग्रामीण जीवन में व्याप्त समस्याओं पर विचार करने पर मजबूर करती है।