भावनाएं, जरूरते, महत्वाकांक्षाएं- ये सब एक स्त्री की- लेकिन शरीर पुरुष का! एक बेहद दर्दनाक परिस्थिति जिसमे ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं, समझौता बनकर रह जाती है. ऐसे इंसान और उसके घरवालो को हर मकाम पर समाज के दुर्व्यवहार और जिल्लत का सामना करना पड़ता है. अनमोल इस बात को अच्छी तरह समझता है क्योंकि उसकी अपनी एकमात्र संतान और छोटा भाई, दोनों की यही वास्तविकता है, दोनों किन्नर है. भाई को पल-पल पिसते, घर और बाहर प्रताड़ित और अपमानित होते हुए देख अनमोल यह दृढ निश्चय करता है कि वह अपने बेटे को अधूरी ज़िन्दगी नहीं, बल्कि भरपूर ज़िन्दगी जीने के लिए हर तरह से सक्षम बनाएगा!! लेकिन क्या वह ऐसा कर पाता है....पढ़िए इस उपन्यास में.
भावनाएं, जरूरते, महत्वाकांक्षाएं- ये सब एक स्त्री की- लेकिन शरीर पुरुष का! एक बेहद दर्दनाक परिस्थिति जिसमे ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं, समझौता बनकर रह जाती है. ऐसे इंसान और उसके घरवालो को हर मकाम पर समाज के दुर्व्यवहार और जिल्लत का सामना करना पड़ता है. अनमोल इस बात को अच्छी तरह समझता है क्योंकि उसकी अपनी एकमात्र संतान और छोटा भाई, दोनों की यही वास्तविकता है, दोनों किन्नर है. भाई को पल-पल पिसते, घर और बाहर प्रताड़ित और अपमानित होते हुए देख अनमोल यह दृढ निश्चय करता है कि वह अपने बेटे को अधूरी ज़िन्दगी नहीं, बल्कि भरपूर ज़िन्दगी जीने के लिए हर तरह से सक्षम बनाएगा!! लेकिन क्या वह ऐसा कर पाता है....पढ़िए इस उपन्यास में.