ऋषभ सक्सेना एक जिंदादिल, खुशमिजाज शख्स था, जिसकी फिलहाल में जिंदगी से कोई बड़ी ख्वाहिश नहीं थी। वो जो करता था, उसमें खुश था। संतुष्ट था। लेकिन वो कहते हैं न, इंतजार करने वालों को वही मिलता है, जो मेहनत करने वाले छोड़ देते हैं। क्या ऋषभ के साथ भी वही हुआ? एक कत्ल की वारदात, जिससे वो न चाहते हुए भी जुड़ गया था। फिर और जुड़ता चला गया। और जुड़ता चला गया। इतना कि उस मामले के कारण उसे अपनी जान सांसत में लगने लगी। फिर क्या हुआ? 'बेगुनाह गुनहगार'
ऋषभ सक्सेना एक जिंदादिल, खुशमिजाज शख्स था, जिसकी फिलहाल में जिंदगी से कोई बड़ी ख्वाहिश नहीं थी। वो जो करता था, उसमें खुश था। संतुष्ट था। लेकिन वो कहते हैं न, इंतजार करने वालों को वही मिलता है, जो मेहनत करने वाले छोड़ देते हैं। क्या ऋषभ के साथ भी वही हुआ? एक कत्ल की वारदात, जिससे वो न चाहते हुए भी जुड़ गया था। फिर और जुड़ता चला गया। और जुड़ता चला गया। इतना कि उस मामले के कारण उसे अपनी जान सांसत में लगने लगी। फिर क्या हुआ? 'बेगुनाह गुनहगार'