'मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।’, ऐसा हर कोई किसी ना किसी के लिए तो ज़रूर सोचता है। लेकिन क्या वह सही सोचता है? यह प्रेम आख़िर है क्या? क्या हम सच में प्रेम को पहचानते हैं जो इतनी जल्दी किसी से प्रेम करने का दावा करने लगते हैं? क्योंकि आकाशिक के अनुसार प्रेम सिर्फ़ किताबों में सिमट कर रह गया है, दुनिया में प्रेम के नाम पर उसके बहरूपिये घूम रहे हैं। इस कहानी में हम प्रेम को समझने की कोशिश कर रहे हैं, आकाशिक की नज़र से... जो कहता है-
प्रेम नाम है बहती दरिया का , रोकना चाहोगे तो सूख जायेगी अपेक्षाओं के बांध मत बांधना कभी , वरना गीली मिट्टी ही हाथ आएगी।
'मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।’, ऐसा हर कोई किसी ना किसी के लिए तो ज़रूर सोचता है। लेकिन क्या वह सही सोचता है? यह प्रेम आख़िर है क्या? क्या हम सच में प्रेम को पहचानते हैं जो इतनी जल्दी किसी से प्रेम करने का दावा करने लगते हैं? क्योंकि आकाशिक के अनुसार प्रेम सिर्फ़ किताबों में सिमट कर रह गया है, दुनिया में प्रेम के नाम पर उसके बहरूपिये घूम रहे हैं। इस कहानी में हम प्रेम को समझने की कोशिश कर रहे हैं, आकाशिक की नज़र से... जो कहता है-
प्रेम नाम है बहती दरिया का , रोकना चाहोगे तो सूख जायेगी अपेक्षाओं के बांध मत बांधना कभी , वरना गीली मिट्टी ही हाथ आएगी।