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मेरी जान के दुश्मन

सुरेन्द्र मोहन पाठक
4.09/5 (208 ratings)
पुलिस इन्स्पेक्टर सिन्हा की दुहाई थी कि लोग बढ़ते हुए क्राइम के लिये पुलिस को जिम्मेदार ठहराने में, पुलिस को नाकारा, कामचोर और रिश्वतखोर साबित करने में तो सबसे आगे रहते हैं; लेकिन पुलिस को सहयोग देने से और अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिये बहाने ढूंढते हैं । लेकिन एक आदमी, सिर्फ एक आदमी, पुलिस को सहयोग देने से न डरा । और फिर उस सहयोग की उसे भयंकर कीमत चुकानी पड़ी । लोग उसके खून के प्यासे हो गए ! उसकी जान के दुश्मन हो गए !
Format:
Paperback
Pages:
pages
Publication:
1981
Publisher:
Subodh Pocket Books
Edition:
First
Language:
hin
ISBN10:
ISBN13:
kindle Asin:
B0DLT96MBT

मेरी जान के दुश्मन

सुरेन्द्र मोहन पाठक
4.09/5 (208 ratings)
पुलिस इन्स्पेक्टर सिन्हा की दुहाई थी कि लोग बढ़ते हुए क्राइम के लिये पुलिस को जिम्मेदार ठहराने में, पुलिस को नाकारा, कामचोर और रिश्वतखोर साबित करने में तो सबसे आगे रहते हैं; लेकिन पुलिस को सहयोग देने से और अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिये बहाने ढूंढते हैं । लेकिन एक आदमी, सिर्फ एक आदमी, पुलिस को सहयोग देने से न डरा । और फिर उस सहयोग की उसे भयंकर कीमत चुकानी पड़ी । लोग उसके खून के प्यासे हो गए ! उसकी जान के दुश्मन हो गए !
Format:
Paperback
Pages:
pages
Publication:
1981
Publisher:
Subodh Pocket Books
Edition:
First
Language:
hin
ISBN10:
ISBN13:
kindle Asin:
B0DLT96MBT