'कब तक पुकारूँ' यह रांगेय राघव जी की प्रतिभा और लेखन-क्षमता को अभिषिक्त करनेवाली जीवंत औपन्यासिक रचना है। इसमे उन्होंने समाज के सर्वथा उपेक्षित उस वर्ग का चित्रण अत्यंत सरल और रोचक शैली में प्रस्तुत किया है जिसे सभ्य समाज 'नट' या 'करनट' कहकर पुकारता है। इस पुस्तक की गणना हिंदी के कालजयी साहित्य में की जाती है l
'कब तक पुकारूँ' यह रांगेय राघव जी की प्रतिभा और लेखन-क्षमता को अभिषिक्त करनेवाली जीवंत औपन्यासिक रचना है। इसमे उन्होंने समाज के सर्वथा उपेक्षित उस वर्ग का चित्रण अत्यंत सरल और रोचक शैली में प्रस्तुत किया है जिसे सभ्य समाज 'नट' या 'करनट' कहकर पुकारता है। इस पुस्तक की गणना हिंदी के कालजयी साहित्य में की जाती है l